
भा.कृ.अनु.प. - के.क.प्रौ.अनु.सं ने 27 सितंबर 2024 को 'भारत में कपास की चुनाई के यंत्रीकरण को सफलतापूर्वक अपनाने के लिए चुनौतियॉं और रणनीतियॉं' विषय पर हाइब्रिड मोड में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन का उद्देश्य कपास यंत्रीकरण में अब तक हुई प्रगति का आकलन करना, कमियों की पहचान करना तथा भारत में कपास की चुनाई के पूर्ण यंत्रीकरण को प्राप्त करने के लिए चुनौतियाँ और रणनीतियाँ तैयार करना था ।
डॉ. एस.एन. झा, उप महानिदेशक (इंजीनियरिंग), भा.कृ.अनु.प., नई दिल्ली और राष्ट्रीय सम्मेलन के मुख्य अतिथि ने कपास की चुनाई और प्रसंस्करण के पूर्ण यंत्रीकरण को प्रदर्शित करने के लिए एक मॉडल विकसित करने और प्रदर्शित करने का आग्रह किया। उन्होंने भा.कृ.अनु.प. - के.क.प्रौ.अनु.सं को यांत्रिक रूप से चुने गए कपास के प्रसंस्करण के लिए व्यवहार्य सफाई मशीनरी विकसित करने पर काम करने की सलाह दी। उन्होंने मशीन से चुनाई के लिए उपयुक्त कपास की किस्मों को विकसित करते समय इंजीनियरिंग मापदंडों पर विचार करने की वकालत की। उन्होंने सभी हितधारकों को शामिल करते हुए कपास यंत्रीकरण पर एक टास्क फोर्स बनाने का सुझाव दिया।
डॉ. सी. डी. माई, पूर्व अध्यक्ष, कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल और राष्ट्रीय सम्मेलन के विशेष अतिथि ने भा.कृ.अनु.प.- सीआईसीआर में निजी क्षेत्र की बीज कंपनियों द्वारा सहयोगात्मक तरीके से मशीन से कटाई के लिए उपयुक्त किस्म के विकास पर किए गए काम की सराहना की। उन्होंने कपास चुनाई के यंत्रीकरण को किसानों के लिए अनुकूल बनाने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों से ऐसे एकीकृत अनुसंधान प्रयासों को जारी रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. एस.के. शुक्ला, निदेशक, भा.कृ.अनु.प. - के.क.प्रौ.अनु.सं ने उल्लेख किया कि पिछले दो दशकों में, कपास की चुनाई और जिनिंग के यंत्रीकरण के कई पहलुओं पर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया गया है। उनका विचार था कि केवल यांत्रिक कपास चुनाई वाले यंत्रों का विकास कपास मशीनीकरण की चुनौती का समाधान नहीं करता है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कपास यंत्रीकरण में कुछ चुनौतियों का समाधान पीपीपी मोड में अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एचडीपीएस प्रौद्योगिकी के तहत मशीन से चुनाई के लिए उपयुक्त किस्मों के विकास में अच्छी प्रगति हुई है। निजी उद्योग द्वारा विकसित दो पंक्ति वाली कपास स्पिंडल पिकर ने भारतीय परिस्थितियों में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं। वर्तमान में जिन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, वे हैं मशीन से चुनी हुई कपास की सफाई के लिए प्रभावी डिफोलिएंट्स और मशीनरी का विकास।
डॉ. वी. जी. आरुडे, प्रधान वैज्ञानिक एवं आयोजन सचिव ने पूर्ण कपास यंत्रीकरण को सफलतापूर्वक अपनाने के लिए व्यापक रणनीतियाँ प्रस्तुत कीं। उन्होंने मशीन से चुनी गई कपास की सफाई और ओटाई के लिए एक केंद्रीकृत पायलट संयंत्र सुविधा बनाने की आवश्यकता दोहराई। उन्होंने कहा कि भारत में कपास यंत्रीकरण को वास्तविकता में लाने के लिए सरकार से हितधारकों को नीतिगत समर्थन और वित्तीय प्रोत्साहन प्रमुख कारक हैं।
राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर 'कपास चुनाई और प्रसंस्करण का यंत्रीकरण' पर तकनीकी लेख का संग्रह जारी किया गया।
उद्योग से प्रमुख हितधारक जैसे मै.रासी सीड्स, मै.अंकुर सीड्स, मै. नुजुवीडू सीड्स, मै.बायर क्रॉप साइंस, मै.तीर्थ एग्रो एग्रो टेक्नोलॉजी, मै.ग्रीन रोबोट मशीनरी, मै.बजाज स्टील इंडस्ट्रीज, मै.जाधाव गियर्स ने अपने अनुभव साझा किए एवं कपास यंत्रीकरण के लिए वर्तमान स्थिति और कार्य योजनाएं सामने रखीं। सेमिनार में आईसीएआर-सीआईसीआर, नागपुर और आईसीएआर-सीआईएई, भोपाल और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के विशेषज्ञों ने भी अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
शताब्दी वर्ष के बाद नई चुनौतियों से निपटने में भा.कृ.अनु.प.-के.क.प्रौ.अनु.सं की भूमिकाओं और गतिविधियों का उन्मुखीकरण निर्धारित करने के लिए डॉ. एस.एन. झा की अध्यक्षता में एक विचार-मंथन सत्र का आयोजन भी किया गया।